तारीख थी 25 जून 2025। अमेरिका के फ्लोरिडा से NASA ने एक ऐतिहासिक मिशन लॉन्च किया। मकसद था – अंतरिक्ष में चुने गए 4 बेहद ख़ास एस्ट्रोनॉट्स को इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) तक पहुँचाना। एक ऐसा मिशन, जो दुनिया की सबसे बड़ी अंतरिक्ष एजेंसियों के बीच सहयोग का प्रतीक बनने वाला था।
लेकिन इस चार सदस्यीय टीम में एक चेहरा ऐसा भी था, जो किसी और देश का नहीं, हमारे अपने भारत का था। उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर का वो लड़का, जिसने कभी 1999 के कारगिल युद्ध के जज्बे से प्रेरणा लेकर, देश के लिए कुछ बड़ा करने का सपना देखा था। वो सपना, जो आज अंतरिक्ष में एक नई उड़ान भरने वाला था।
जी हाँ, आज वो लड़का अंतरिक्ष में है, और उसने वहीं से हमें अपने प्यारे भारत की कुछ ऐसी तस्वीरें और वीडियो भेजी हैं, जिन्हें देखकर आप हैरान रह जाएँगे! कौन है ये युवा? कैसे एक आम भारतीय लड़का बना भारत का पहला अंतरिक्ष यात्री, जिसने International Space Station में कदम रखा? और उसका ये मिशन भारत के लिए क्यों इतना महत्वपूर्ण है? आइए, जानते हैं।
लखनऊ से लड़ाकू विमान तक: शुभांशु का बचपन और हौसले की उड़ान
10 अक्टूबर 1985 को, उत्तर प्रदेश के लखनऊ शहर में जन्मे, शुभांशु शुक्ला के पिता शंभू दयाल शुक्ला एक रिटायर्ड सरकारी अधिकारी और माँ, आशा शुक्ला, एक गृहिणी हैं। शुभांशु ने अपनी शुरुआती पढ़ाई लखनऊ के सिटी मोंटेसरी स्कूल से पूरी की।
लेकिन शुभांशु का जीवन सिर्फ़ किताबों तक सीमित नहीं था। साल 1999, जब भारत ‘कारगिल युद्ध’ लड़ रहा था, उस वक्त की तस्वीरें, सैनिकों का जज्बा, देश के प्रति उनका समर्पण… इन सबने युवा शुभांशु को गहराई से प्रभावित किया। उसी दिन शुभांशु ने तय कर लिया था कि वो भी देश के लिए कुछ करेगा।
इसी प्रेरणा ने उन्हें नेशनल डिफेंस एकेडमी (NDA) और नेवल एकेडमी परीक्षा के लिए प्रेरित किया। 2005 में उन्होंने NDA से कंप्यूटर साइंस में बैचलर ऑफ़ साइंस की डिग्री ली, और फिर इंडियन एयर फ़ोर्स एकेडमी में फ्लाइंग ट्रेनिंग के लिए चुने गए।
साल 2006 में, शुभांशु भारतीय वायुसेना में टेस्ट पायलट के लिए चुने गए। 2,000 घंटे से ज़्यादा का उड़ान अनुभव, Su-30 MKI, MiG-21, और Jaguar जैसे कई लड़ाकू विमानों पर उनकी बेजोड़ महारत… उन्होंने साबित कर दिया था कि वे आसमान के असली बादशाह हैं। लेकिन शुभांशु की मंजिल सिर्फ़ पृथ्वी का आसमान नहीं था, वो तो तारों को छूना चाहते थे।
अंतरिक्ष यात्री बनने का सफ़र: कठोर प्रशिक्षण और भारत का विश्वास
साल 2019 में, शुभांशु को ISRO के ‘इंडियन ह्यूमन स्पेसफ्लाइट प्रोग्राम’ के लिए चुना गया। लाखों में से सिर्फ चार उम्मीदवारों में उनका नाम था – ये अपने आप में उनकी असाधारण प्रतिभा का सबूत था। उन्हें रूस के यूरी गगारिन कॉस्मोनॉट ट्रेनिंग सेंटर में बेसिक ट्रेनिंग के लिए भेजा गया, जो 2021 में पूरी हुई।
लेकिन ये तो बस शुरुआत थी। उन्होंने इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस (IISc) से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर ऑफ़ इंजीनियरिंग की डिग्री भी पूरी की। सोचिए, एक फाइटर पायलट से लेकर एयरोस्पेस इंजीनियर और फिर अंतरिक्ष यात्री तक का ये सफ़र, कितना जुनून और समर्पण मांगता है!
27 फरवरी 2024 को, ISRO ने आधिकारिक तौर पर शुभांशु शुक्ला को भारत के पहले मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशन के एस्ट्रोनॉट टीम के सदस्य के रूप में पेश किया। उनका बैकअप क्रू मेंबर ISRO के एक और शानदार एस्ट्रोनॉट प्रशांत नायर हैं। इन दोनों ने ह्यूस्टन के NASA जॉनसन स्पेस सेंटर में भी ट्रेनिंग ली है। ये सब दिखाता है कि भारत अब अंतरिक्ष में अपने दम पर नहीं, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के साथ आगे बढ़ रहा है।
Axiom Mission 4: शुभांशु का ऐतिहासिक मिशन और वैज्ञानिक योगदान
और आज… शुभांशु शुक्ला, Axiom Mission 4 के मिशन पायलट के रूप में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन पर हैं। ये मिशन NASA, स्पेसएक्स और ISRO के बीच एक बड़ा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग है, जिसका मकसद अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष उड़ान में सहयोग को मजबूत करना है।
सबसे बड़ी बात ये है कि शुभांशु ISS का दौरा करने वाले पहले भारतीय अंतरिक्ष यात्री हैं। राकेश शर्मा बेशक ऑर्बिट तक गए थे, लेकिन ISS तक पहुँचने वाले पहले भारतीय शुभांशु शुक्ला हैं। उनका 14 दिनों का ये मिशन सिर्फ़ एक यात्रा नहीं है, ये एक वैज्ञानिक प्रयोगशाला है!
ISS पर शुभांशु लगभग 60 प्रयोग करेंगे, जिनमें से कम से कम 7 प्रयोग ISRO द्वारा डिज़ाइन किए गए हैं। उनका एक मुख्य अध्ययन है कि कैसे माइक्रो-ग्रेविटी, यानी सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण, पौधों के अंकुरण और उनके शुरुआती विकास को प्रभावित करता है। इसके लिए वे मेथी और मूंग के बीज अंकुरित कर रहे हैं। इस प्रयोग का नेतृत्व कर्नाटक के धारवाड़ स्थित कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक रविकुमार होसामणि और IIT धारवाड़ के सुधीर सिद्धपुरेड्डी कर रहे हैं।
वे सूक्ष्म शैवाल भी ले गए हैं, जिनकी भोजन, ऑक्सीजन और जैव ईंधन उत्पन्न करने की क्षमता की जांच की जा रही है। ये प्रयोग धरती पर लौटने के बाद भी कई पीढ़ियों तक जारी रहेंगे ताकि बीजों के आनुवंशिकी, सूक्ष्मजीवी पारिस्थितिकी तंत्र और पोषण प्रोफाइल में होने वाले बदलावों का पता चल सके।
शुभांशु ने एक्सिओम स्पेस की मुख्य विज्ञानी लूसी लो के साथ बातचीत में कहा, “मुझे बहुत गर्व है कि ISRO देशभर के राष्ट्रीय संस्थानों के साथ सहयोग करने और कुछ शानदार शोध करने में सक्षम रहा है, जो मैं सभी विज्ञानियों और शोधकर्ताओं के लिए आइएसएस पर कर रहा हूं। ऐसा करना रोमांचक और आनंददायक है।”
निष्कर्ष: एक सपना, एक प्रेरणा, एक नया भारत
तो, एक शर्मीले बच्चे से लेकर देश के सबसे सम्मानित अंतरिक्ष यात्री बनने तक का शुभांशु शुक्ला का सफ़र हमें बताता है कि सपने देखने और उन्हें पूरा करने की कोई सीमा नहीं होती। उनकी कहानी उन लाखों युवाओं के लिए प्रेरणा है, जो आज भी अपने छोटे शहरों में बैठकर बड़े-बड़े सपने देखते हैं।
शुभांशु का मिशन सिर्फ़ वैज्ञानिक प्रयोगों तक सीमित नहीं है, ये भारत की बढ़ती वैज्ञानिक शक्ति, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग की क्षमता और सबसे बढ़कर, देश के हर युवा के सपनों को पंख देने का प्रतीक है। जब देश के युवा ऐसे सपने देखते हैं, और उन्हें पूरा करने के लिए जी-जान लगा देते हैं, तो एक दिन ऐसा आता है जब वे देश का नाम रोशन करते हैं – चाहे वो धरती पर हो या अंतरिक्ष में।
अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न (FAQs)
Q1. शुभांशु शुक्ला कौन हैं और क्यों प्रसिद्ध हुए?
A1: शुभांशु शुक्ला भारत के पहले ऐसे अंतरिक्ष यात्री हैं, जिन्होंने इंटरनेशनल स्पेस स्टेशन (ISS) पर कदम रखा और कई वैज्ञानिक प्रयोग किए।
Q2. शुभांशु शुक्ला का चयन ISRO में कैसे हुआ?
A2: शुभांशु का चयन ISRO के ह्यूमन स्पेसफ्लाइट प्रोग्राम के तहत कड़ी चयन प्रक्रिया के बाद हुआ, जिसमें लाखों आवेदकों में से सिर्फ चार चुने गए।
Q3. शुभांशु ने ISS पर कौन-कौन से प्रमुख प्रयोग किए?
A3: उन्होंने बीज अंकुरण, शैवाल पर अनुसंधान, माइक्रोग्रैविटी में जीवन के अध्ययन सहित 60 से अधिक वैज्ञानिक प्रयोग किए।
Q4. शुभांशु के मिशन का भारत के लिए क्या महत्व है?
A4: यह मिशन भारत के अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीकी शक्ति का प्रदर्शन है, साथ ही यह युवाओं के लिए प्रेरणा स्रोत है।
Q5. शुभांशु की शिक्षा और प्रारंभिक पृष्ठभूमि क्या है?
A5: शुभांशु लखनऊ के सिटी मोंटेसरी स्कूल से पढ़े, NDA से ग्रेजुएट हैं और IISc से एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में मास्टर डिग्री रखते हैं।
Q6. क्या शुभांशु शुक्ला की यह यात्रा भारत के अन्य मिशनों के लिए उपयोगी होगी?
A6: बिल्कुल, उनका अनुभव भविष्य के गगनयान और अंतरराष्ट्रीय मिशनों के लिए मील का पत्थर बनेगा

