भारत के उपराष्ट्रपति का चुनाव: प्रक्रिया, योग्यता और मतदान प्रणाली की पूरी जानकारी

भारत के उपराष्ट्रपति श्री जगदीप धनखड़ जी ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। यकीनन, यह एक ऐसी ख़बर है जो देश भर में चर्चा का विषय बन गई है! लेकिन इस न्यूज़ के साथ ही, सबसे बड़ा सवाल ये उठता है कि अब भारत का नया उप-राष्ट्रपति कैसे चुना जाएगा? इस पद पर कौन बैठेगा, और इसकी पूरी प्रक्रिया क्या है? क्योंकि यह पद खाली नहीं रखा जा सकता! आज हम आपको भारत के उपराष्ट्रपति का चुनाव की पूरी ABCD आसान भाषा में समझाएंगे – कौन वोट डालता है, कैसे वोट डाले जाते हैं, और सबसे महत्वपूर्ण, उपराष्ट्रपति अपना इस्तीफा किसे सौंपते हैं!

उपराष्ट्रपति की भूमिका और पद का संवैधानिक महत्व

सबसे पहले, आइए समझते हैं कि भारत में उपराष्ट्रपति का पद इतना महत्वपूर्ण क्यों है। हमारे संविधान के अनुच्छेद 63 के अनुसार, भारत का एक उपराष्ट्रपति होगा। यह पद देश का दूसरा सबसे बड़ा संवैधानिक पद है।

उपराष्ट्रपति का मुख्य काम होता है राज्यसभा के पदेन सभापति के रूप में काम करना – यानी, वे राज्यसभा की बैठकों की अध्यक्षता करते हैं और सदन के कामकाज को सुचारु रूप से चलाते हैं। इसके अलावा, अगर राष्ट्रपति का पद खाली हो जाए – चाहे इस्तीफे से, निधन से, या महाभियोग से – तो उपराष्ट्रपति तब तक कार्यवाहक राष्ट्रपति के रूप में काम करते हैं, जब तक कि नए राष्ट्रपति का चुनाव न हो जाए।

भारत के उपराष्ट्रपति का चुनाव के लिए योग्यता और नामांकन प्रक्रिया

तो, अब सवाल है कि कौन बन सकता है भारत का उपराष्ट्रपति? इसके लिए कुछ ज़रूरी योग्यताएँ हैं:

  • वह भारत का नागरिक हो।
  • उसकी उम्र कम से कम 35 साल हो।
  • वह राज्यसभा का सदस्य चुने जाने की योग्यता रखता हो।
  • वह किसी लाभ के पद पर न हो।

नामांकन की बात करें तो, किसी भी उम्मीदवार के नाम को कम से कम 20 सांसदों द्वारा प्रस्तावित किया जाना चाहिए, और 20 अन्य सांसदों द्वारा इसका समर्थन (second) किया जाना चाहिए। साथ ही, उन्हें 15,000 रुपये की जमानत राशि भी जमा करनी होती है।

निर्वाचक मंडल (Electoral College) – कौन डालता है वोट?

भारत के उपराष्ट्रपति का चुनाव में वोट कौन डालता है, यह समझना बेहद ज़रूरी है, क्योंकि यह राष्ट्रपति चुनाव से अलग है। उपराष्ट्रपति के लिए एक खास ‘निर्वाचक मंडल‘ यानी इलेक्टोरल कॉलेज होता है।

इस इलेक्टोरल कॉलेज में संसद के दोनों सदनों – यानी लोकसभा और राज्यसभा – के सभी सदस्य शामिल होते हैं। इसमें निर्वाचित (elected) और मनोनीत (nominated) – दोनों तरह के सांसद वोट डाल सकते हैं।

ध्यान दीजिए: राष्ट्रपति चुनाव में राज्यों की विधानसभाओं के सदस्य वोट डालते हैं, लेकिन भारत के उपराष्ट्रपति का चुनाव में राज्य विधानसभाओं के सदस्य वोट नहीं डाल सकते! यह एक बड़ा अंतर है।

मतदान और मतगणना की प्रक्रिया

भारत के उपराष्ट्रपति का चुनाव ‘आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली‘ (Proportional Representation) के तहत ‘एकल संक्रमणीय मत‘ (Single Transferable Vote) द्वारा होता है, और मतदान गुप्त (secret ballot) होता है।

इसका मतलब क्या है? मतदाता अपनी पसंद के उम्मीदवारों को 1, 2, 3… के क्रम में वरीयता (preference) देते हैं। वे सिर्फ़ एक उम्मीदवार को वोट नहीं देते, बल्कि अपनी पसंद के क्रम में सभी उम्मीदवारों को नंबर देते हैं।

जीतने के लिए एक उम्मीदवार को एक निश्चित ‘कोटा’ या वोटों का ‘आवश्यक न्यूनतम संख्या’ हासिल करना होता है। इसका फ़ॉर्मूला होता है: (कुल वैध वोट / (पदों की संख्या + 1)) + 1। चूंकि उपराष्ट्रपति का पद एक ही है, तो यह होगा: (कुल वैध वोट / 2) + 1।

उदाहरण के लिए इसे ऐसे समझें: मान लीजिए, भारत के उपराष्ट्रपति का चुनाव में सिर्फ 3 उम्मीदवार हैं: उम्मीदवार A, उम्मीदवार B, और उम्मीदवार C. और कुल 100 वैध वोट डाले गए हैं। जीतने के लिए उम्मीदवार को कम से कम 51 वोट चाहिए।

राउंड 1: पहली वरीयता के वोटों की गिनती हुई और नतीजे कुछ ऐसे आए:

  • उम्मीदवार A को मिले: 45 वोट (पहली पसंद)
  • उम्मीदवार B को मिले: 35 वोट (पहली पसंद)
  • उम्मीदवार C को मिले: 20 वोट (पहली पसंद)

आप देख सकते हैं कि किसी भी उम्मीदवार को 51 वोटों का ज़रूरी कोटा नहीं मिला है। तो अब यहाँ ‘वोट ट्रांसफर’ की प्रक्रिया शुरू होती है।

राउंड 2: सबसे कम वोट (यानी 20 वोट) पाने वाले उम्मीदवार C को चुनाव से बाहर कर दिया जाता है। अब उसके 20 वोटों को देखा जाता है। इन 20 वोटों पर, मतदाता ने अपनी दूसरी वरीयता (second preference) किसे दी थी, उसे गिना जाता है। मान लीजिए, इन 20 वोटों में से:

  • 15 वोटों पर दूसरी वरीयता उम्मीदवार A को दी गई थी।
  • 5 वोटों पर दूसरी वरीयता उम्मीदवार B को दी गई थी।

ये 15 और 5 वोट अब उम्मीदवार A और B के खाते में जुड़ जाते हैं। तो अब कुल वोट कुछ ऐसे होंगे:

  • उम्मीदवार A के कुल वोट: 45 (पहले) + 15 (C से) = 60 वोट
  • उम्मीदवार B के कुल वोट: 35 (पहले) + 5 (C से) = 40 वोट

अब आप देख सकते हैं, उम्मीदवार A को 60 वोट मिल गए हैं, जो कि जीतने के लिए ज़रूरी 51 वोटों के कोटे से ज़्यादा हैं। इस तरह, उम्मीदवार A को विजयी घोषित कर दिया जाता है।

यह प्रक्रिया तब तक दोहराई जाती है, जब तक कोई उम्मीदवार आवश्यक वोटों का कोटा पूरा न कर ले। यही ‘एकल संक्रमणीय मत प्रणाली’ है, जो सुनिश्चित करती है कि जीतने वाले उम्मीदवार को व्यापक समर्थन मिले। यह प्रक्रिया निष्पक्ष और पारदर्शी तरीके से पूरी की जाती है, और अंत में सर्वाधिक वोट पाने वाला उम्मीदवार विजयी घोषित होता है।

पद अवधि, इस्तीफा और पद से हटाना

एक बार चुने जाने के बाद, उपराष्ट्रपति का कार्यकाल पांच साल का होता है। वे कितनी भी बार इस पद के लिए फिर से चुने जा सकते हैं।

और अब सबसे अहम सवाल जिसका जवाब आप जानना चाहते थे: अगर उपराष्ट्रपति इस्तीफा देना चाहें, तो वे अपना इस्तीफा भारत के राष्ट्रपति को सौंपते हैं।

इस्तीफे के अलावा, उपराष्ट्रपति को पद से हटाया भी जा सकता है। इसके लिए राज्यसभा में एक प्रस्ताव पास किया जाता है, जिसके लिए राज्यसभा के तत्कालीन सदस्यों के बहुमत की ज़रूरत होती है, और इस प्रस्ताव को लोकसभा की सामान्य सहमति भी मिलनी चाहिए। यह एक तरह की महाभियोग जैसी प्रक्रिया है।

निष्कर्ष

यह थी भारत के उपराष्ट्रपति के चुनाव की पूरी प्रक्रिया – एक ऐसी संवैधानिक व्यवस्था जो हमारे लोकतंत्र की मज़बूती को दर्शाती है। उपराष्ट्रपति का पद खाली होने पर, संविधान यह सुनिश्चित करता है कि देश का कामकाज बिना किसी रुकावट के चलता रहे, और एक लोकतांत्रिक प्रक्रिया के तहत नए उपराष्ट्रपति का चुनाव हो, और बेहतर समझने के लिए ऊपर दिए गए वीडियो को देखें.

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