ताशकंद समझौता: 1966 के भारत-पाक शांति समझौते का इतिहास और शास्त्री जी की मृत्यु

ताशकंद में शांति समझौता दक्षिण एशिया के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय है। जनवरी 1966 में, तत्कालीन सोवियत संघ के एक गणराज्य, उज्बेकिस्तान की राजधानी ताशकंद में एक शांति सम्मेलन का आयोजन किया गया था। इस सम्मेलन को सोवियत राष्ट्रपति अलेक्सी कोसिगिन ने प्रायोजित किया था, जिनकी मध्यस्थता ने भारत और पाकिस्तान के नेताओं को एक साथ लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

ताशकंद समझौता घोषणा-पत्र: शांति समझौते के मुख्य बिंदु

कोसिगिन की पहल पर, पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान और भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री मिले। उन्होंने अपने देशों के बीच सामान्य और शांतिपूर्ण संबंधों को फिर से स्थापित करने, और अपने लोगों के बीच समझ व मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद घोषणा-पत्र पर हस्ताक्षर किए। सितंबर 1965 के युद्ध के बाद शांति स्थापित करने की दिशा में यह एक बड़ा कदम था।

इस समझौते के प्रमुख बिंदु निम्नलिखित थे:

1. सद्भावनापूर्ण संबंध: दोनों पक्षों ने संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अनुरूप अच्छे पड़ोसी संबंधों के लिए प्रयास करने पर सहमति व्यक्त की। उन्होंने बल के उपयोग के बजाय शांतिपूर्ण तरीकों से विवादों को हल करने के अपने दायित्वों को दोहराया। यह स्वीकार किया गया कि भारत-पाकिस्तान उपमहाद्वीप और दोनों देशों के लोगों के हित निरंतर तनाव के माहौल में पूरे नहीं हो सकते, और केवल शांतिपूर्ण माहौल में ही विकास संभव है। इसमें जम्मू-कश्मीर के मामलों पर भी विचार किया गया, जिसमें प्रत्येक पक्ष ने अपनी स्थिति को बनाए रखा।

2. सेना वापसी: दोनों देशों ने 25 फरवरी, 1966 तक अपनी सशस्त्र सेनाओं को 5 अगस्त, 1965 की सीमा रेखा, यानी पूर्व-युद्ध स्थिति पर पीछे हटाने का संकल्प लिया। साथ ही, युद्धविराम रेखा (Ceasefire Line) पर संबंधित शर्तों का पालन करने पर भी सहमति बनी।

3. गैर-हस्तक्षेप: भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने के सिद्धांत पर आधारित होंगे।

4. प्रचार पर नियंत्रण: दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के खिलाफ किसी भी प्रकार के दुष्प्रचार को हतोत्साहित करने और दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को बढ़ावा देने वाले पहलुओं के प्रचार को प्रोत्साहित करने का वचन दिया।

5. राजनयिक संबंध: पाकिस्तान में भारत के उच्चायुक्त और भारत में पाकिस्तान के उच्चायुक्त के पदों को बहाल किया गया, जिससे दोनों देशों के राजनयिक कार्य सामान्य हो सकें। दोनों सरकारें राजनयिक संबंधों पर वियना अभिसमय, 1961 का पालन करने पर सहमत हुईं।

6. आर्थिक और सांस्कृतिक आदान-प्रदान: भारत और पाकिस्तान के बीच आर्थिक, व्यापारिक संबंध, संचार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को फिर से स्थापित करने का निर्णय लिया गया। इसके अलावा, दोनों देशों के बीच मौजूदा समझौतों के कार्यान्वयन के लिए कदम उठाने पर सहमति बनी।

7. युद्धबंदियों की वापसी: दोनों देशों ने युद्धबंदियों के प्रत्यर्पण (Repatriation) के लिए अपने संबंधित अधिकारियों को निर्देश देने का निर्णय लिया।

8. अपूर्ण मुद्दे: शरणार्थियों की समस्याओं और अवैध प्रवासियों के प्रश्न पर विचार-विमर्श जारी रखने की बात कही गई। हाल के संघर्ष में जब्त की गई एक-दूसरे की संपत्ति को लौटाने के प्रश्न पर भी विचार किया जाएगा।

9. निरंतर संवाद: दोनों देश उच्च और अन्य स्तरों पर प्रत्यक्ष मामलों को हल करने के लिए बैठकें जारी रखेंगे। संयुक्त भारतीय-पाकिस्तानी निकायों के गठन की आवश्यकता को स्वीकार किया गया, जो आगे उठाए जाने वाले कदमों की जानकारी अपनी सरकारों को देंगे।

ताशकंद समझौता के बाद की प्रतिक्रिया: भारत और पाकिस्तान में असंतोष

ताशकंद घोषणा का मुख्य उद्देश्य भारत और पाकिस्तान के बीच शांति बनाए रखने के लिए एक रूपरेखा तैयार करना था। यह माना गया कि दोनों पक्ष स्वयं किसी समझौते पर नहीं पहुंच सकते थे, और इसलिए सोवियत नेताओं द्वारा तैयार किए गए मसौदे पर उन्हें हस्ताक्षर करने के लिए प्रेरित किया गया।

हालांकि, इस ताशकंद समझौता को भारत में पूर्ण अनुमोदन नहीं मिला। आलोचकों ने महसूस किया कि समझौते में ‘कोई युद्ध नहीं’ समझौते का प्रावधान नहीं था, और न ही ऐसा कोई प्रावधान था कि पाकिस्तान कश्मीर में गुरिल्ला आक्रमणों को छोड़ देगा। पाकिस्तान में, समझौते पर बेहद तीखी नाराजगी व्यक्त की गई। इसके विरोध में वहां दंगे और प्रदर्शन हुए। जुल्फिकार अली भुट्टो ने अयूब खान और इस समझौते से दूरी बना ली, और अंततः इससे अलग होकर अपना खुद का राजनीतिक दल बना लिया।

लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमयी मृत्यु: एक अनसुलझा रहस्य

11 जनवरी, 1966 की सुबह, ताशकंद घोषणा पर हस्ताक्षर के ठीक बाद वाली सुबह, भारत के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का हृदयाघात से निधन हो गया। उनकी मृत्यु पर तुरंत विवाद उत्पन्न हो गया, और यह अफवाह फैली कि उन्हें जहर देकर मारा गया था, जिससे उनकी मृत्यु एक रहस्य बनी हुई है।

ताशकंद समझौता भारत और पाकिस्तान के संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने अस्थायी रूप से शांति स्थापित की। हालांकि, यह दोनों देशों के लिए संतोषजनक साबित नहीं हुआ और इसके परिणाम स्वरूप कई अनसुलझे सवाल और विवाद आज भी कायम हैं। लाल बहादुर शास्त्री की मृत्यु इस समझौते से जुड़ा एक दुखद और अनसुलझा अध्याय है।

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