महाराजा सवाई जय सिंह

जयपुर, जिसे ‘पिंक सिटी’ के नाम से जाना जाता है, अपने रंग-बिरंगे बाजारों, शानदार किलों और समृद्ध इतिहास के लिए मशहूर है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस खूबसूरत शहर को बसाने वाले थे महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय? एक दूरदर्शी शासक, खगोलशास्त्री और कुशल कूटनीतिज्ञ, जिन्होंने न सिर्फ जयपुर को एक आधुनिक शहर के रूप में स्थापित किया, बल्कि खगोल विज्ञान में भी उनका योगदान अद्वितीय था। इस लेख मे, उनके जीवन, उपलब्धियों और जंतर-मंतर जैसे अनूठे योगदानों की कहानी को विस्तार से जानते हैं।

सवाई जय सिंह का प्रारंभिक जीवन

महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय का जन्म 3 नवंबर 1688 को आमेर (अब जयपुर) में हुआ था। उनके पिता, महाराजा बिशन सिंह, कछवाहा राजवंश के शासक थे। मात्र 11 वर्ष की उम्र में, 31 दिसंबर 1699 को पिता की मृत्यु के बाद, जय सिंह को आमेर का शासक बनाया गया। इतनी कम उम्र में सिंहासन संभालना आसान नहीं था, लेकिन उनकी बुद्धिमत्ता और सूझबूझ ने उन्हें एक असाधारण शासक बनाया।

लेकिन क्या आपको पता है उनको सवाई की उपाधि औरंगजेब से मिली थी। 1701 में, जब जय सिंह केवल 15 वर्ष के थे, उन्होंने दक्कन में मराठों के खिलाफ मुगल सेना का समर्थन किया। उनकी वाक्पटुता और साहस से प्रभावित होकर औरंगजेब ने उन्हें ‘सवाई’ की उपाधि दी, जिसका अर्थ है ‘अपने समकालीनों से डेढ़ गुना बेहतर’। यह उपाधि उनके वंशजों द्वारा भी गर्व के साथ अपनाई गई।

जयपुर शहर की स्थापना

जयपुर शहर सवाई जय सिंह की द्वारा बसायी गई थी। 18 नवंबर 1727 को उन्होंने इस शहर की नींव रखी, जो बाद में राजस्थान की राजधानी बनाई गई । इसका निर्माण के कारण थे, आमेर जो पहले कछवाहा राजवंश की राजधानी थी, पहाड़ी क्षेत्र में होने के कारण विकास की संभावनाओं में सीमित था। इसलिए, जय सिंह ने एक नया और सुनियोजित शहर बसाने का निर्णय लिया।

जयपुर को प्राचीन हिंदू ग्रिड पैटर्न पर बनाया गया, जिसका उल्लेख 3000 ईसा पूर्व की पुरातात्विक खोजों में मिलता है। शहर की योजना बंगाली वास्तुकार विद्याधर भट्टाचार्य ने तैयार की, जो शिल्प-शास्त्रों के विद्वान थे। इसकी सुरक्षा और समृद्धि भी अद्वितीय थी। जयपुर की मोटी दीवारों और 17,000 सैनिकों की गैरीसन ने इसे सुरक्षित बनाया। व्यापारी देशभर से यहां बसे, जिसने शहर को आर्थिक समृद्धि दी।

आज जयपुर अपनी अनूठी वास्तुकला और यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल ‘जंतर-मंतर’ के लिए विश्वविख्यात है।

खगोल विज्ञान में योगदान

सवाई जय सिंह का खगोल विज्ञान के प्रति प्रेम उनकी सबसे बड़ी पहचान है। 18वीं शताब्दी में, जब भारत में वैज्ञानिक प्रगति सीमित थी, उन्होंने खगोलशास्त्र को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया। उन्होंने दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में पांच जंतर-मंतर (वेधशालाएं) बनवाईं। इन वेधशालाओं का मुख्य उद्देश्य सूर्य, चंद्रमा और अन्य ग्रहों की गति का सटीक अध्ययन करना था। इसके लिए खगोलीय तालिकाओं (जिज) का संकलन किया गया, जो ज्योतिषियों के लिए महत्वपूर्ण थीं।

उस समय यूरोपीय खगोलशास्त्री जहां दूरबीनों का उपयोग करते थे, जय सिंह ने नग्न आंखों से अवलोकन पर जोर दिया। उनका मानना था कि यह भारतीय संस्कृति के करीब है। इसके अलावा इन्होंने सबसे बड़ा सूर्ययंत्र की स्थापना की। जयपुर के जंतर-मंतर में स्थित ‘सम्राट यंत्र’ दुनिया का सबसे बड़ा पत्थर से बना सूर्यघड़ी है, जिसे 1734 में बनाया गया। यह यूनेस्को विश्व धरोहर का हिस्सा है।

सैन्य और कूटनीतिक कौशल

सवाई जय सिंह न केवल एक विद्वान थे, बल्कि एक कुशल सेनानायक और कूटनीतिज्ञ भी थे। उन्होंने मुगल साम्राज्य के तहत कई युद्धों में हिस्सा लिया और बाद में मुगल आधिपत्य से स्वतंत्रता की दिशा में कदम उठाए।

जय सिंह ने औरंगजेब के साथ दक्कन युद्धों में हिस्सा लिया। 1732 में, मालवा के गवर्नर के रूप में, उनके पास 30,000 सैनिकों की सेना थी। मुगल प्रभाव से मुक्ति के लिए, उन्होंने 1716 में प्राचीन वैदिक अनुष्ठान ‘अश्वमेध यज्ञ’ और 1734 में ‘वाजपेय यज्ञ’ किया, जो सदियों बाद पहली बार हुआ। जय सिंह ने जैवाना तोप बनवाई, जो दुनिया की सबसे बड़ी पहियों वाली तोप है। यह उनकी सैन्य नवाचार की मिसाल है।

हालांकि, गंगवाना की लड़ाई (1741) में उनकी हार ने उनके राजपूताना में विस्तार के सपनों अधूरा रह गया। जिसके बाद 1743 में उनका निधन हो गया।

सवाई जय सिंह की विरासत

सवाई जय सिंह का योगदान केवल जयपुर शहर या जंतर-मंतर तक सीमित नहीं है। उन्होंने संस्कृति, विज्ञान और वास्तुकला के क्षेत्र में जो छाप छोड़ी, वह आज भी प्रासंगिक है।

उन्होंने हिंदू धर्म को बढ़ावा दिया और ब्राह्मण विद्वानों को जयपुर में बसने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने संस्कृत में ‘जय सिंह कारिका’ नामक ज्योतिष ग्रंथ लिखा। जयपुर का सुनियोजित लेआउट आज भी शहरी नियोजन का एक बेहतरीन उदाहरण है। उनके निधन के बाद, उनके पुत्र ईश्वरी सिंह ने सिंहासन संभाला, लेकिन जय सिंह की तरह करिश्माई शासक कोई दूसरा नहीं हुआ।

सवाई जय सिंह से जुड़े कुछ रोचक तथ्य

  • वे संस्कृत, गणित और ज्योतिष के विद्वान थे।
  • उन्होंने विदेशी खगोलशास्त्रियों को जयपुर आमंत्रित कर चर्चाएं आयोजित कीं।
  • जयपुर के जंतर-मंतर में 13 खगोलीय यंत्र हैं, जो आज भी कार्यरत हैं।
  • उनकी बनाई जैवाना तोप आज भी आमेर किले में देखी जा सकती है।

निष्कर्ष

महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय एक ऐसे शासक थे, जिन्होंने विज्ञान, वास्तुकला और शासन के क्षेत्र में अपनी अमिट छाप छोड़ी। जयपुर शहर और जंतर-मंतर उनकी दूरदर्शिता के जीवंत प्रमाण हैं। उनका जीवन हमें सिखाता है कि बुद्धिमत्ता, साहस और नवाचार से असंभव को भी संभव बनाया जा सकता है।

अक्सर पूछे जाने वाले सवाल (FAQ)

1. सवाई जय सिंह को ‘सवाई’ की उपाधि कैसे मिली?
उन्हें यह उपाधि मुगल सम्राट औरंगजेब ने 1701 में उनकी बुद्धिमत्ता और साहस के लिए दी थी। इसका अर्थ है ‘अपने समकालीनों से डेढ़ गुना बेहतर’।

2. जयपुर शहर की स्थापना कब हुई थी?
जयपुर की नींव 18 नवंबर 1727 को सवाई जय सिंह ने रखी थी।

3. जंतर-मंतर का क्या महत्व है?
जंतर-मंतर खगोलीय अवलोकन के लिए बनाई गई वेधशालाएं हैं, जिनमें सूर्य, चंद्रमा और ग्रहों की गति का अध्ययन किया जाता था। जयपुर का जंतर-मंतर यूनेस्को विश्व धरोहर है।

4. सवाई जय सिंह ने कितनी वेधशालाएं बनवाईं?
उन्होंने दिल्ली, जयपुर, उज्जैन, मथुरा और वाराणसी में कुल पांच जंतर-मंतर बनवाए।

5. सवाई जय सिंह की मृत्यु कब हुई?
उनका निधन 21 सितंबर 1743 को जयपुर में हुआ।

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