
क्या आप यकीन करेंगे कि भारत में एक ऐसा शिव मंदिर है, जहाँ शिवलिंग जमीन पर नहीं, बल्कि हवा में तैरता है? जी हाँ, और वो भी हज़ारों सालों से! लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती। इस मंदिर में एक रहस्यमयी स्तंभ है, जो सीधे दक्षिणी ध्रुव की ओर इशारा करता है। जो बताता है कि उसके और South Pole के बीच धरती का एक भी टुकड़ा नहीं है—सिर्फ़ और सिर्फ़ समुंदर और ये दावा हज़ारों साल पहले किया गया था, जब हमारे पास ना तो GPS था, ना Satellite ! तो आखिर ये कैसे संभव हुआ? क्या ये कोई चमत्कार है या प्राचीन भारत की अकल्पनीय तकनीक? आखिर क्या है सोमनाथ मंदिर का इतिहास और इसके रहस्य के पीछे की कहानी?
सोमनाथ मंदिर का पौराणिक कथा
कहानी शुरू होती है चंद्रदेव से। पौराणिक कथाओं के अनुसार, सोमनाथ मंदिर की उत्पत्ति पौराणिक कथाओं में चंद्रदेव यानि देवता सोम से जुड़ी है, कथा के अनुसार, चंद्रदेव कि 27 पत्नियों थी, जिसमे से वो केवल रोहिणी को प्राथमिकता देते थे इससे नाराज होकर उनके ससुर दक्ष प्रजापति ने श्राप दिया था कि उनकी चमक कम हो जाएगी । इस श्राप से मुक्ति पाने के लिए, चंद्रदेव ने प्रभास क्षेत्र में भगवान शिव की तपस्या की। प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें श्राप से मुक्ति दी और पहला ज्योतिर्लिंग स्थापित किया, जिसे सोमनाथ कहा गया जिसका मतलब था और ‘सोम’ यानी चंद्र और ‘नाथ’ यानी शिव का मिलन।
सोमनाथ मंदिर का इतिहास
साल 1026। मध्य एशिया से एक आक्रांता आता है—महमूद गजनवी! सोमनाथ उस वक्त न सिर्फ आस्था का केंद्र था, बल्कि धन-संपदा का भंडार भी था। कहते हैं, मंदिर में सोने-चांदी और हीरों की ऐसी चमक थी कि दूर-दूर तक उसकी बातें होती थीं। थीं। गजनवी, मध्य एशिया से आए एक आक्रांता, जो मंदिर की अपार संपत्ति की लालच में आया और उसने मंदिर पर हमला बोला, पवित्र शिवलिंग को तोड़ा, और करीब 20 मिलियन दीनार की संपत्ति लूट ली। अगर इसे सोने की आज की कीमत से देखें, तो ये लगभग 58,000 करोड़ रुपये से ज्यादा की संपत्ति थी जिससे आज आप इससे पूरा शहर बसा सकते हैं।
लेकिन ये अंत नहीं था। 1299 में अलाउद्दीन खिलजी की सेना आई, फिर 1395 में जाफर खान, 1451 में महमूद बेगड़ा, और 1706 में औरंगजेब ने भी इसे नष्ट करने की कोशिश की। कुछ स्रोत, दावा करते हैं कि इसे 17 बार नष्ट किया गया लेकिन हर बार हिंदू राजा—जैसे कि चालुक्य, गुर्जर-प्रतिहार, सोलंकी वंश के भीमदेव जैसे शासकों ने इसे फिर से खड़ा किया, वो भी पहले से ज्यादा शानदार तरीके से । ये मंदिर हर बार राख से उठकर फीनिक्स की तरह चमका!
आजादी के बाद का सोमनाथ मंदिर
1947 में जब भारत आजाद हुआ, तब सोमनाथ फिर से खंडहरों में था। सरदार वल्लभभाई पटेल, भारत के उप-प्रधानमंत्री, ने इसे पुनर्जीवित करने का संकल्प लिया। महात्मा गांधी की सलाह पर, जो चाहते थे कि पुनर्निर्माण के लिए धन जनता से एकत्रित किया जाए, पटेल ने सोमनाथ ट्रस्ट की स्थापना की। जनता से धन एकत्रित कर, मंदिर को मरू-गुर्जर शैली में पुनर्निर्मित किया गया। जो चालुक्य वास्तुकला का एक रूप है। 11 मई 1951 को, तत्कालीन राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने प्राण प्रतिष्ठा की, जो स्वतंत्र भारत के लिए एक ऐतिहासिक क्षण था।
आज का सोमनाथ मंदिर, समंदर के किनारे खड़ा, शांति और भक्ति का अनोखा संगम है, जो 1951 में पुनर्निर्मित, मरू-गुर्जर शैली में बना है, और सोलंकी वंश की वास्तुकला से प्रेरित है। यह 155 फीट ऊंचा, सात मंजिला है, और इसमें जटिल नक्काशी हैं, जो हिंदू पौराणिक कथाओं को दर्शाती हैं। मंदिर अरब सागर के तट पर स्थित है, और इसकी भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि इसके सामने धरती के south pole तक कोई भूमि नहीं है, जो इसे विशेष बनाता है। हर शाम, मंदिर में ध्वनि और प्रकाश शो आयोजित होता है, जो इसके इतिहास को जीवंत करता है।
सोमनाथ मंदिर का रहस्य
अब बात करते हैं उस रहस्य की, जिसने इस वीडियो की शुरुआत में आपको चौंकाया था। सोमनाथ का वो तैरता हुआ शिवलिंग—क्या ये सच है? दोस्तों, ये कोई जादू नहीं, बल्कि प्राचीन तकनीक का ऐसा चमत्कार है, जो आज भी सवाल खड़े करता है! कुछ विद्वान और इतिहासकार मानते हैं कि ये चुंबकीय शक्ति का खेल हो सकता है। कल्पना करें—हजारों साल पहले हमारे पूर्वजों ने ऐसी तकनीक बनाई होगी, जिसमें शिवलिंग को हवा में तैराने के लिए पत्थरों या धातुओं में चुंबकत्व का इस्तेमाल किया गया। आज भी कुछ मंदिरों में ऐसे दावे मिलते हैं, जैसे तमिलनाडु के कुंभकोणम मंदिर में, जहां पत्थरों की चुंबकीय शक्ति देखी गई है। लेकिन सोचिए, जब न माइक्रोस्कोप थे, न मशीनें, तब ये कैसे संभव हुआ? क्या ये वाकई तकनीक थी, या कोई अलौकिक शक्ति? जवाब आज भी रहस्य है!” ”
और वो स्तंभ? जो सीधे साउथ पोल की ओर इशारा करता है—ये तो वैज्ञानिकों के लिए भी पहेली बना हुआ है! मंदिर की भौगोलिक स्थिति ऐसी है कि इसके सामने अरब सागर से लेकर अंटार्कटिका तक कोई जमीन नहीं—सिर्फ समुद्र! इसे ‘बाणस्तंभ’ कहते हैं, जिसके बारे में कहा जाता है कि ये हजारों साल पहले बनाया गया था। उस वक्त न GPS था, न सैटेलाइट, फिर भी ये इतना सटीक कैसे? कुछ वैज्ञानिक मानते हैं कि प्राचीन भारत में खगोलशास्त्र और ज्यामिति का ज्ञान इतना उन्नत था कि हमारे पूर्वजों ने पृथ्वी की गोलाई और दिशाओं को बिना टेक्नोलॉजी के समझ लिया था। दूसरी ओर, कुछ लोग इसे शिव की दिव्य शक्ति से जोड़ते हैं।
निष्कर्ष
सोमनाथ मंदिर की कहानी विनाश और पुनर्जन्म की गाथा है। सही मायने मे , ‘यह मंदिर है भारत की आत्मा का आईना है’, जो राष्ट्र की विपत्ति से उठने की क्षमता और अपनी परंपराओं को संरक्षित करने की दृढ़ता को दर्शाता है। यह मंदिर न केवल एक धार्मिक स्थल है, बल्कि भारत की सांस्कृतिक पहचान का एक जीवंत प्रतीक है ।
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